सुदामा नगर में रामकथा का छटे दिवस पर प्रभु राम के वनवास का वर्णन हुआ
हरदा/ मंगलवार को सुदामा नगर में चित्रा इमली दुर्गा उत्सव समिति द्वारा शारदीय नवरात्री में कथा वाचिका पूजा वशिष्ठ द्वारा कथा के क्षष्ठम दिवस पर प्रभु राम के वनवास का व्रतांत भक्तो को सुनाया संजीव झांकियों के साथ महाराज जी
ने कहा कि जब विवाह के बाद भगवान राम को राजा बनाने का ऐलान कर दिया, तो देवता और संतों के मन में विचार उठा कि जब भगवान राम को राजगद्दी सौंप दी जाएगी तो हमें रावण के अत्याचारों से कौन मुक्त कराएगा। इस पर विचार करते हुए मां सरस्वती से प्रार्थना की और मां सरस्वती मंथरा की जिह्वा पर बैठ गई। राजा दशरथ ने जब राम की सौगंध खाकर कहा कि तुम हमसे जो चाहो मांग लो, तब कैकेयी ने भरत को राजगद्दी और राम को 14 वर्ष का वनवास मांगा, तब दशरथ ने कहा कि कैकेयी तुम्हारे सिर पर आज कोई पिशाच बैठ गया है जो आप मेरी मौत चाहती हो। क्योंकि मै राम के बिना जीवित नहीं रह सकता और जब राम वनवास को चले जाएंगे, तो मेरी मौत और तुम्हारा विधवा होना निश्चत है। घर में पहली बार कलह देखकर राम व्यस्थि हो गए। अत: हमें अपने कलह को बच्चों के समक्ष नही करना चाहिए। मां कौशिल्या ने कहा कि यदि पिता का आदेश वन जाने का है तो मेरा अधिकार रोकने का था किन्तु जब मां ने ही आदेश किया है तो मैं तुम्हें रोकूंगी नही और राम-सीता, लक्ष्मण वन चले जाते है। उन्होंने कहा कि भक्त तो भगवान की पूजा करता ही है और भगवान उसकी कामना पूरी करते ही हैं लेकिन कभी कभी भगवान भी भक्त की शरण में चले जाते हैं और भगवान को भी भक्त की बात को मानना पड़ता है। यह प्रसंग आज उस वक्त चरितार्थ हो उठा, जब श्रीराम, लक्ष्मण और सीता मां के अयोध्या से वन जाते वक्त का प्रसंग हजारों भक्तों को वर्णित किया। महाराज जी ने जैसे ही श्रीराम कथा के इस महत्वपूर्ण और भावनापूर्ण प्रसंग को सुनाया, पंडाल में मौजूद नर-नारी के नेत्रों से अश्रुधारा बहने लगी।
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