Sunday, 1 October 2017

मुस्लिम समुदाय ने निकाला जुलुस, अखाडा समिति के कलाकारों ने दिखाये हैरतअंगेज करतब


मुस्लिम समुदाय ने निकाला जुलुस, अखाडा समिति के कलाकारों ने दिखाये हैरतअंगेज करतब

पवित्र समय न्यूज़

सिराली/ नगर में मुस्लिम धर्माबलम्बियो द्वारा मुहर्रम के त्याग और बलिदान के इस पर्व पर नगर में डी जे की धुन पर हैरतअंगेज करतब दिखाकर या हुसैन की शहादत को याद किया।प्रतिबर्षानुसार इस बर्ष भी नगर के  सुलेमान अखाडा, साई अखाडा, इस्लामी अखाडा के युवा कलाकारों द्वारा नगर में जुलुस निकाला मस्जिद मोहल्ले से प्रारंभ हुए इस जुलुस में मुख्य मार्ग  पर जगह जगह कलाकारों द्वारा हैरतअंगेज करतब और अपनी हुनर को दिखाकर हसन हुसैन की याद को ताजा किया गया। जुलुस का पुराना बस स्टेंड , पर नवजवान कमेटी अध्यक्ष शेख असलम उपाध्यक्ष उस्मान शाह, सहित वरिष्ठ कांग्रेस नेता उमेश पाटिल सहित कार्यकर्ता ने स्वप्ल्हार जलपान कराकर जुलुस का स्वागत किया इसके अलावा ज्ञान कुंज स्कूल , हिंदुस्तान गेरेज,  ग्रुप द्वारा स्टाल लगाकर स्वागत किया। जुलुस का संचालन हयात पटेल, गोलु मंसूरी खलीफा रफीक चूड़ीवाला ने किया । जुलुस में थाना प्रभारी कंचन सिंह ठाकुर पुरे दल बल के साथ मौजूद रही। चाक चौराहो पर भी ग्राम कोटवार और पुलिस जवान यातायात व्यवस्था बनाये हुए थे।

गांधीचोक पर रखाये ताजिये
रात में चलेगा जियारत का दौर

नगर के ग़ांधीचोक में बर्षो से तीन सुंदर और आकर्षक ताजिये शनिबार की रात्रि 9 बजे रखे गए है। जिसमे एक ताजिया मकड़ाई रियासत का भी है। जो बर्षो से बनता आ रहा है।रविवार की रात्रि समाज के लोग इन ताजियों की लोभान छोड़कर या हुसैन की जियारत करते है।कई लोगो की मन्नते पूरी होने पर उनके द्वारा भी ताजिये बनाये जाते है।

क्या है मोहर्रम

 इतिहास कहता है कि यजीद की 80 हजार फ़ौज के सामने पैगंबर मुहम्मद सा. के नवासे या इमाम हुसेन की  अपने करबला के 72 बहादुरो साथियो के साथ जंग की कई दिनों तक यह लड़ाई चली।यजीद का कहना था कि में इस्लाम छोड़कर मेरी अगुवाई करो इधर या हुसैन ने उनकी बात नही मानी और इस्लाम को ही सबसे बड़ा धर्म माना हुसेन ने हार नही मानी 72 बहादुर सैनिक के साथ युद्ध किया जिसमें 72 बहादूर शहीद हो गए। और अकेले इमाम हुसैन रह गए जो दस दिनों तक बहादुर सेनिको के शवों के साथ  भूखे प्यासे रहकर युद्ध करते रहे  और एक दिन नमाज पढ़ते समय दुश्मन यजीद ने पीछे से बार कर दिया। और या हुसैन शहीद हो गए जो आज अमर है। इसीलिए हजारो बर्षो से इस मोहर्रम पर्व पर  शहीदों के बलिदानों को याद किया जाता है। कर्बला के शहीदों ने  इस्लाम धर्म को नया जीवन प्रदान किया था। कई लोग इस माह में पहले 10 दिनों के रोजे  रखते हैं।
जो लोग 10 दिनों के रोजे नहीं रख पाते, वे 9 और 10 तारीख के रोजे रखते हैं। इस दिन  जगह-जगह पानी के प्याऊ और शरबत की छबील लगाई जाती है। इस दिन पूरे देश में लोगों  की अटूट आस्था का भरपूर समागम देखने को मिलता है।

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