Friday, 27 October 2017

नर्मदा की जर्बदस्त सिकुडन से खतरे की आशंका* नदी में गेरेरिक डाल्फिन और कछुए खत्म, नाभी कुंड में जलग्रहण क्षमता प्रभावित


* *नर्मदा की जर्बदस्त सिकुडन से खतरे की आशंका*
   नदी में गेरेरिक डाल्फिन और कछुए खत्म, नाभी कुंड में जलग्रहण क्षमता प्रभावित* ,*

    *अनिल उपायाय(ब्यूरो)*
 *खातेगांव* ./देवास नेमावर मे इस बार नर्मदा नदी खतरे के स्तर तक सिमट गई है,!
इससे क्षेत्र के लोग चिंता में है, । यही नही यहा नदी की गहराई भी लगभग
कम होती जा रही है। इससे पानी में रहने वाले जीव-जंतुओ की तादाद तेजी से
द्यटी है अब यहा से दुर्लभ गेजेरिक डाल्फिन मछलियां तथा कछुए पूरी तरह
खत्म हो चुके है, पर्यावरणविद्र बताते है कि ये संकेत खतरे के है और आने
वाले सालो मे भी यहा चलता रहा तो अगले कुछ सालों में नर्मदा का अस्तित्व
घटकर किसी नाले की तरह हो जाएगा।
अंचल की जीवनदायिनी नर्मदा नदी पर भी अब खतरे के बादल मडराने लगे है,
नेमावर के 70 से 95 आयु वर्ग के बुजुर्ग बताते है कि सदानीरा नर्मदा को
हम पहली बार इतनी दयनीय स्थिति के रूप में बहते हुए देख रहे है।
पर्यावरणविद्र इसे आने वाले दिनो में खतरे के रूप में चिन्हित कर रहे है,
अंचल के लोगो में इस बात से खासी चिंता है, दरअसल इस पूरे इलाके का
जनजीवन ही नर्मदा पर आधारित है,ऐसे में नदी पर खतरा उनके लिए व्यक्तिगत
नुकसान कि तरह है, इसकी सिकुडन के वारे में विषेशज्ञ बताते है की इसकी
सहायक नादियों के लगातार सूखते जाने, बडे-बडे बांध बनने, प्रदूशण ओर
तापमान में तेजी कुछ अहम कारण है, नेमावर नर्मदा नदी नाभी स्थल भी माना
जाता है, अमरकंटक से खंभात की खाडी तक 1312 किमी का सफर तय करने वाले
नर्मदा का नेमावर में केंद्र बिंदु माना जाता है। अमरकंटक के करीब 600
किमी का सफर तय कर नर्मदा नेमावर के नाभी केन्द्र से होती हुई
उंकारेश्रव्र, महेश्रव्र होते हुए गुजरात को और बढती है। बरगी बांध, तवा
बांध, और सहायक नादियो पर बने बांधो की वजह से पहले ही नर्मदा का प्रवाह
कुछ कम हुआ था, लेकिन अब इस साल तो अब तक सबसे कम जल स्तर बताया जा रहा
है। यहा कभी 60 से 7 फीट तक नर्मदा की गहराई हुआ करती थी लेकिन अब कम
होकर केवल 40 फीट तक  सीमट आई है, साल भर तक बहने वाली सहायक नादिया भी
इस बार सूख गई है। नर्मदा भारत कि 7 प्रमुख पवित्रतम नादियों में से एक
मानी जाती है, रेवांचल  में इसका महत्व गंगाा के समतुल्य है। नर्मदा
काउद्रभव भगवान शकर से माना जाता है, इसलिए शंकरी नर्मदा भी कहते है।
इसके किनारे कई तीर्थ स्थल हैं नेमावर में नाभी कुंड होने से यहा धार्मिक
विधि विधान तथा सिद्वेश्रव्र तीर्थ के दर्षन के लिए पर्व त्यौहारो पर
हजारो दर्षनार्थी उमडतें है, लेकिन बीते कुछ सालों में यह धार्मिक विधि
विधान और पूजा अर्चना ही नर्मदा के खत्म होने का कारण बन रही है, लोग
मिठाई प्रसाद, अनाज, कपउे, नरियल, पूजा सामग्रीख हवन सामग्री, अस्थी
विर्सजन, पिंडदान,तुलादान, सहित कई तरह का सामान यहा छोड जाते है। जिससे
नदी हर साल प्रदूशित हो रही है। बडी तादाद में यहा प्रमिमाए भी विसर्जित
होती है। इसके कुछ आगे नर्मदा किनारे अंतिम संस्कार भी किया जाता है।
पहले अंतिम संस्कार के लिए शव को नर्मदा के प्रवाह में छोड देते थे,
लेकिन अब जनेरिक डाल्फिन और बडे जलचर जंतुओं के खत्म हो जाने से जलदाग
लगभग बंद हैं नेमावर के लोग बताते है कि आसपास के गांवों के करीब 70
प्रतिशत लोगो के दिन की शुरूआत नर्मदा स्नान से हि होती है। यदि हालात
यही रहे तो आने वाले दिनों में पाप धोने वाली नर्मदा का पानी संक्रमित
होकर बीमारियां फैलाएगा। होलकर शासन में यहा हर दिन सवा मन चावल पकाकर
जलचर जतुओंं और मछलियो को भोग के रूप में अर्पित किया जाता था। लेकिन अब
बडी तादाद में जलचर जंतु प्रदूशण से खत्म हो रहे है और कोई इनकी चिंता
नही कर रहा, पर्व के दौरान नर्मदा किनारे करीब 15 किंटल तथा हर दिन करीब
1 किंटल अनाज नर्मदा में चढावे के रूप में मिलता है। यह कई बार सड जाती
है मछली आखेट पर प्रतिंबंध के बावजूद जाल फैलाए शिकारी यहा बेखौफ देखे जा
सकते है।

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