गुरू की वाणी सुनने से मन निर्मल होता है
आर्यिका श्री अन्तर मति माताजी
किर्ती स्तंम्भ का हुआ भूमिपुजन
अनिल उपाध्याय
खातेगाॅव। आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज' के 50 वे मुनि दिक्षा संयम स्वर्णिम महोत्सव कार्यक्रमों की श्रंखला मे दि. जैन समाज खातेगाॅव द्वारा 105 अन्तर मति माताजी के संसघ सानिध्य व् आशीर्वाद से कीर्ती
स्तम्भ का भुमिपुजन भाजपा जिला महामंत्री नरेन्द्र चौधरी पूर्व भाजपा मण्ड़ल अध्यक्ष राकेश जोशी के मुख्य आतिथ्य में चातुर्मास समिति अध्यक्ष
प्रकाषचंद सेठी, पार्षद कमल कासलीवाल, रितेश वाकलीवाल के विशेष आतिथ्य
में किया गया।
उक्त जानकारी समाज अध्यक्ष जम्बु सेठी, महामंत्री मुकेष काला ने देते
हुये बताया की 15 फीट उंचा लाल पाषण से यह किर्ती स्तम्ंभ राजस्थान के
कारीगरों द्वारा तैयार किया जावेगा। किर्ती स्तंम्भ के भुमि पुजन की
प्रक्रिया ब्रम्हचारी किरीट भैया ने विधी पूर्वक मंत्रोच्चार के साथ
पूर्ण कराई। अतिथियों का स्वागत समाज उपाध्यक्ष रमेश पाटनी, नरेन्द्र
पोरवाल, दिलीप सेठी ने तिलक लगाकर किया।
इसी अवसर पर आर्यिका 105 श्री अंतरमति माताजी ने प्रवचन में कहा की गुरू
के प्रति श्रध्दा और समर्पण होना चाहियें। यदि गुरू के प्रति षिष्य का
समर्पण नही है तो उसे षिष्यत्व की प्राप्ती नही होगी। गुरू के लिये भक्त
नही षिष्य बनना चाहियें। भक्त गुरू के चरण स्पर्ष करता है। किन्तु षिष्य
गुरू के आचरण को स्पर्ष करता है। संसार में शांति प्रदान करने वाली, मन
को शीतलता प्रदान करने वाली यदि कोई वस्तु है तो वह है निग्रंथ की
गुरूवाणी, अर्थात भगवान की वाणी। भगवान की वाणी आत्मा को शंाति प्रदान
करती है, गुरू की वाणी सुनने से मन निर्मल होता है। भगवान व गुरू के
सानिध्य में बैठने से पाप कर्म का क्षय होता है। गुरू की वाणी सुनने से
भावों मे निर्मलता होती हैं, सम्यक धारण होता है। मैत्री भाव बढता है।
माताजी के प्रवचन के पूर्व नरेन्द्र चौधरी, राकेश जोशी ने भी अपने भाव
व्यक्त किये। भूमि पुजन के इस पावन प्रसंग पर मुख्य रूप से सुषील काला,
कपूर वाकलीवाल, गजेन्द्र सेठी, नितीन पाटनी, मनीष कासलीवाल, राजेश
पोरवाल, निकेश गंगवाल सहित सैकड़ो धर्मानुरागी उपस्थित थे। कार्यक्रम का
संचालन प्रवेस सेठी ने किया।
No comments:
Post a Comment